कंक्रीट के जंगल शहर में जो शहरी मानव रह रहा है।
वन मानुष सा आचरण कर उत्पत्ति की गाथा कह रहा है।
आधुनिक शहरी और वनमानुष में बड़ा अंतर एक जरूर है।
वन मानुष तो सरल था मगर शहरी में अनजान गरूर है।
गरूर है किस बात का इसका भी कोई जबाब नहीं।
वनमानुष के तो ख्वाब थे शहरी का कोई ख्वाब नहीं।
वन मानुष तो ख्वाबों के बल शहरों तक तो आगया।
शहरी तो खुद की खातिर सारे ख्वाबों को ही खा गया।
मानुष रीति रिवाजों से ही एकल से वस्ती तक आया।
पर विशाल शहरों में रहकर शहरी मानव है भरमाया।
आनेवाली पीढ़ी की भी शहरी को नहीं कोई चिंता आज।
खुद में मस्त हो रहा है वो मानता नहीं कोई रीति रिवाज।
रीति रिवाजों को कर दरकिनार वो निजी जीवन ही जी रहा है।
सिर्फ भौतिक प्रगति के लालच में निजता का मीठा जहर पी रहा है।
शहरी मानव का पतिपत्नी का रिश्ता सिर्फ स्त्रीपुरुष का रिश्ता हो गया है।
लगता है विकसित मानव कंक्रीट के जंगलों का फिर वन मानुष हो गया है।
वन मानुष सा आचरण कर उत्पत्ति की गाथा कह रहा है।
आधुनिक शहरी और वनमानुष में बड़ा अंतर एक जरूर है।
वन मानुष तो सरल था मगर शहरी में अनजान गरूर है।
गरूर है किस बात का इसका भी कोई जबाब नहीं।
वनमानुष के तो ख्वाब थे शहरी का कोई ख्वाब नहीं।
वन मानुष तो ख्वाबों के बल शहरों तक तो आगया।
शहरी तो खुद की खातिर सारे ख्वाबों को ही खा गया।
मानुष रीति रिवाजों से ही एकल से वस्ती तक आया।
पर विशाल शहरों में रहकर शहरी मानव है भरमाया।
आनेवाली पीढ़ी की भी शहरी को नहीं कोई चिंता आज।
खुद में मस्त हो रहा है वो मानता नहीं कोई रीति रिवाज।
रीति रिवाजों को कर दरकिनार वो निजी जीवन ही जी रहा है।
सिर्फ भौतिक प्रगति के लालच में निजता का मीठा जहर पी रहा है।
शहरी मानव का पतिपत्नी का रिश्ता सिर्फ स्त्रीपुरुष का रिश्ता हो गया है।
लगता है विकसित मानव कंक्रीट के जंगलों का फिर वन मानुष हो गया है।
2 comments:
बहुत सुंदर ..
dhanyabad
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